मुस्कान


 मुस्कान

वो पेड़ याद है तुमको 

जो था उस बाग़ के बीच में,

न कभी फूल आते थे 

न कभी फल लटकते थे ,

पर फिर भी आह आती थी

की मानो मुस्कुराता है |


न झूले लटकते थे 

न साहिल ठहरता था ,

न प्रेमी यु मिलते थे 

न पतंगे अटकती थी .

पर फिर भी आह आती थी

की मानो मुस्कुरात्ता है|


हमने खो दी यह खुशियां 

इस दुनिया की दौड़ में, 

आओ फिरसे जोड़ ले 

लिए मुस्कान साथ में|


न कुछ था कभी उसका 

न कभी हो पाएगा ,

पर फिर भी आह आती थी 

की मानो मुस्कुरात्ता है|

~ हेमांग करगेती 


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